शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

नए सिरे से सारंगढ़ की पुनर्निर्माण करना है ...

 
नए सिरे से सारंगढ़ की पुनर्निर्माण करना है ...
गिरी विलाश पैलेश सारंगढ़ 
 सारंगढ़ का सदियों से गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन न जाने क्यों सारंगढ़ अब सिकुड़ता जा रहा है. आज हम छत्तीसगढ़ का ग्यारहवा राज्य उत्सव मना रहे है मै जानना चाहता हु कि नये राज्य बनने के इतने वर्षों बाद भी सारंगढ़ का समुचित विकास क्यों नही हो पाया ?. जब यह क्षेत्र मध्यप्रदेश राज्य का हिस्सा था तब इस क्षेत्र कि राजनीती में तूती बोलती थी प्रदेश के बड़े फैसले भी यहाँ तय किये जाते थे. आज क्या हो गया कि अलग राज्य बनने के बावजूद भी सारंगढ़ अपनी वजूद तलासने में लगा हुवा है , जबकि इससे छोटे छोटे क्षेत्रो का विकास हो गया है लेकिन सारंगढ़ आज भी अपनी साख बचाने कि जद्दोजहद में उलझा हुवा है. आइये मै कुछ याद दिलाने कि कोशिस करता हु :- बाईस गढ़ के जाने माने राजा नरेशचंद्र सिंह जी मध्य भारत में सारंगढ़ सामंती राज्य के शासक थे उन्होंने छत्तीसगढ़ के आधुनिक राज्य में 1 जनवरी, 1948 को भारत के संघ में अपने राज्य के विलय तक शासन किया था . वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे . राजा साहब कि राजनीती का स्वर्णिम इतिहास है उनके कार्यकाल को जरा गौर करे अविभाजित मध्य प्रदेश के राज्य विधानसभा के लिए 1952 में आयोजित चुनाव जीते . वे पंडित रविशंकर शुक्ल की कैबिनेट में एक कैबिनेट मंत्री बनाये गये थे एक राज गोंड आदिवासी खुद, वह मध्यप्रदेश के विशाल आदिवासी आबादी के बीच अपने साथ तालमेल के लिए प्रसिद्ध रहे है, उन्होंने दूसरे, तीसरे और चौथे आम चुनाव भी जीता और मध्य प्रदेश में विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री रहे उनकी लोकप्रियता को देख कांग्रेस ने उन्हें 13 दिनों के लिए मुख्यमंत्री (13 मार्च +१,९६९ 25 मार्च +१९६९) बनाया था लेकिन कांग्रेस कि दमनकारी नीतियों का वे विरोधी रहे उनकी विचारधारा और कांग्रेस कि निति दोनों में काफी अंतर था इस कारण राजा साहब राजनीती से निराश हो गये और राज्य सभा के पद सदस्यता के कार्यालय में एक साथ इस्तीफा दे कर राजनीति छोड़ दिए . अपने इस्तीफे के बाद भी वे सार्वजनिक जीवन नही छोड़ सके वे राजनीती में अपनी पत्नी और बेटियों को भी उतार दिए सन १९६७ के लोक सभा चुनाव में राजकुमारी रजनीगंधा देवी संसद बनी. कमला देवी मध्य प्रदेश राज्य के सदस्य रही . पुष्पा देवी सिंह जी तीन बार लोकसभा कि निर्वाचित सदस्य रही . इतने दिग्गज नेताओ का गढ़ जन्मभूमि कर्मभूमि रहा सारंगढ़ आज इतना पीछे कैसे हो गया ?. मेरे पिताजी महल के काफी नजदीक रहे उनका राजनैतिक जीवन कि शुरुआत भी सारंगढ़ राज महल से हुई थी वे राजा साहब के लाडले सेवक थे राजा साहेब का उनको पूरा आशीर्वाद था. पिताजी कांग्रेस सेवादल में शामिल हो चुके थे और पार्टी के चहेते भी १९९० के विधान सभा चुनाव में सारंगढ़ वि.स. क्षेत्र से पिताजी को कांग्रेस पार्टी का टिकट मिल गया और वे चुनाव जित गये . विधायक बनने के बाद एक एक कर उनके साथी बिछड़ने लगे जिनमे उनके राजनैतिक गुरु स्व. श्री जगदीश शर्मा जी के आकस्मिक निधन ने उन्हें गहरा चोट पहुचाया, राज महल से सारंगढ़ कि राजनीती बंद हो गयी और अब सडक पर आ चुकी थी . १९९३ के चुनाव में कांग्रेस ने पिताजी को फिर मैदान में उतरा तो महल विरोधी ताकतों ने उन्हें घेर लिया कांग्रेस पार्टी के ही कुछ दलालों ने खुलेआम पार्टी प्रत्याशी का विरोध किया और पिताजी चुनाव हर गये. पिताजी ने कांग्रेस छोड़ने का मन बनाया और १९९९ के चुनाव में वे भाजपा में शामिल हो गये पार्टी छोड़ने के बाद भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नही आई और जीवन पर्यन्त निस्वार्थ जनसेवा करते रहे . अपने कार्यकाल में पिताजी सारंगढ़ क्षेत्र को पूर्ण विकसित जिला के रूप में देखना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य ने सारंगढ़ को घेर लिया आज सारंगढ़ लोकसभा की बात इतिहास के पन्ने पर मिलेगा हमें रायगढ़ क्षेत्र में विलय कर दिया गया इस कारण से सारंगढ़ का सम्बन्ध दिल्ली से टूट सा गया है . लेकिन सतनामियो का अभेद गढ़ आज भी यहाँ कायम है, सतनाम जागरण के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए अब हमें नए सिरे से काम करना पड़ेगा इस पावन नगर का नाम सतनाम गढ़ के रूप में नए जिला बनाने की मांग की जाएगी वैसे तो सारंगढ़ जिला निर्माण की मांग यहाँ की पिछड़ेपन, गरीबी, अशिक्षा और लगातार उपेक्षित बने रहने के कारण लम्बे समय से की जा रही है ये सारंगढ़ की एक छोटी सी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जिससे स्‍थानीय जनमानस की अपेक्षाएं यहाँ की परिस्थितयों के मुताबिक क्‍या हो सकती हैं, अक्सर आरोप लगते हैं कि क्षेत्र के विकास में आम सारंगढ़िया की भागीदारी नहीं मिल पा रही है। स्थानीय लोगों के शिक्षा एवं कौशल में पिछड़ेपन पर इस बात का ठीकरा मढ. दिया जाता है और सच्चाई को दबा दिया जाता है . मै अपनी बात शुरु करने के लिए ब्लॉग का सहारा ले रहा हु क्योंकि मेरे मन में अनेक अनसुलझे प्रश्न है जिनका सम्बन्ध सारंगढ़ से है मै आधुनिक सारंगढ़ निर्माण का पक्षधर हु लेकिन जब भी बोलना चाहा लोगो ने रोक दिया उर मै चुप हो गया मेरी चुप्पी ने मुझे अशांत कर दिया और मै नए सिरे से सारंगढ़ की पुनर्निर्माण में जुड़ गया . इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता सत्य का पालन है . इतिहास गवाह है कि इस समलाई माता के गढ़ ने सतनामी पंथ के गुरु घासीदास को सत्य का ज्ञान दिया था और वे सत्य को जान कर परख कर स्वयं सतपुरुष हो गये उनकी तपोभूमि आज छत्तीसगढ़ कि आन बान और शान है. लेकिन सारंगढ़ को क्या हुवा कि यह पिछड़ गया ?????


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