शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे विद्यार्थी


सारंगढ़। 

शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चूका है। हर साल की तरह इस बार भी पालकों की जेब हल्की हो गई है। स्कूल फीस, बस्ते, किताबों और कॉपियों के दाम बढ़ गए हैं। अधिकांश स्कूलों में शैक्षणिक शुल्क में भी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही किताबें व यूनिफॉर्म भी निश्चित दुकान से खरीदने की शर्त भी पालकों के सामने है। इस कारण किताबों की कमी बताकर दाम ज्यादा भी वसूले जाने की सूचना मिली है।
बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने की चेष्टा में संपन्न वर्ग के पालक इस खर्च को वहन भी कर रहे हैं। लेकिन हम बात कर रहें हे ग्रामीण अंचल की यहां अधिकांश पालकों की शिकायत है कि कक्षा 1 से 8 तक में छत्तीसगढ़ की पुस्तकों के अलावा अन्य पूस्तकों की सूची स्कूल प्रबंधन थमा देता है। इनका कोई खास उपयोग नहीं रहता है। इससे छोटी-छोटी कक्षाओं की सभी किताबें ही 1500 रुपए तक में मिल रही है। इसके अलावा स्कूलों में एक माह का औसतन शैक्षणिक शुल्क 800-1700 रुपए प्रति बच्चे के उपर खर्च आ रहा है। फिर किताबें, कॉपी, पेन, स्कूल ड्रेस, जूते सहित अन्य सुविधाओं का भार अलग से है।

षिक्षा की बेहतरी के लिए केंद्र की सरकार सर्व शिक्षा अभियान में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी गुणात्मक परिवर्तन कर पाने में नाकाम है। जिसके कारण से   सारंगढ़ विकासखंड के कई विद्यालय आज भी भवन विहिन व मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। क्षेत्र के ग्राम पिण्डरी, दूखुपाट में प्राथमीक विद्यालय भवन निर्माण के लिये 3.10 लाख रू. की राशि स्वीकृत है जिसकी प्रथम किस्त में भवन अधुरा बऩा है। और निर्माण कार्य काफी दिनों से बंद है इस संबंध में सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार न्युजपत्रिका ने विद्यालय के प्रधानपाठक से मामले की पुछ परख की तब पता चला कि मामला ब्लाक स्तर के उपयंत्रियों की मनमानी का है।
प्रधानपाठक ने बताया कि द्वितिय किस्त निकालने के लिये इंजिनियर के पास एम.बी. व फाईल जमा किया गया है। परंतु उनके तरफ से कोई प्रत्युत्तर नही मिला है। जैसे राशि आयेगी काम षुरू हो जायेगा।
विदित हो कि यह गांव अनुसूचित जाति बाहुल्य है, ऐतिहासिक जमाने की अनेक रहस्यों को समेंटे हुये आज भी विकास की बाट जोह रहा है यहां के जागरूक समाजसेवी पूर्व उपसरपंच रामदेव कुर्रे ने कहा कि यह तो षासकिय कार्य में लापरवाही है अब तक तो भवन तैयार हो जाना था, जनपद स्तर के अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के फलस्वरूप विद्यार्थी आज भी खाई और तालाब के बिच बने मंगल भवन में फर्श या फटी टाटपट्टियों पर बैठकर षिक्षा अध्ययन को मजबूर हैं।
कई विद्यालय तो ऐसे हैं जहां भूमि समतली करण नही किया गया है इसके अभाव में बारीष होने पर छात्रों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। विद्यालय के बाहर यहाँ- वहाँ कचरे का ढेर बिखरे पड़े रहते हैं। इस कारण बच्चों में संक्रामक बिमारियां होने की संभावना बनी हुई है।

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