शनिवार, 11 अगस्त 2012

भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने के लिये...


सारंगढ़। सरकार ने भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने के लिये सुचना का अधिकार एवं लोक सेवा गारंटी अधिनियम लागू कीये है तथा षासकीय योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिये अलग से राशी भी सरकार द्वारा आंवंटित की जा रही है। इन सबका आषय है कि कार्य में पारदर्षिता हो और जनता के बिच सूचना का आदान प्रदान हो सके। लेकिन सारंगढ़ जनपद क्षेत्र इससे अछूता नजर आता है। सरकार के काम काज को पारदर्षी बनाने के योजना को मूर्तरूप देने के बजाय यहां के अधिकारी कर्मचारी निर्माण व विकास कार्यों से संबंधित सूचना बोर्ड तक लगाना जरूरी नही समझते है। इससे साफ पता चलता है कि कार्य योजना से संबंधित जानकारी जनता से छूपाई जा रही है। जिस कारण से स्व.हित में लगे नेताओं की षह पर आधे अधूरे कार्य संपादित कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है इससे विष्वसनिय छत्तीसगढ़ की विष्वसनियता पर सवल उठने लगा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे अधिकांष कार्यो में सूचना बोर्ड नही लगा है निर्माणकर्ता ठिकेदार से पूछने पर गोलमोल जवाब मिलता है और खबर प्रकाषित होने पर भोले भाले ग्रमीणों को डरा धमका कर मामले को लेदे के निपटाया जाता है इससे गांव में भय और आतंक का आलम है। सत्ता पक्ष के नेताओं की दबंगाई और ठिकेदारों से साठ-गाठ ने भी जन आवाज को दबाने का काम किया है। विकास खण्ड सारंगढ़ में एसे कई पंचायत है जहां करोड़ों रूपये के विकास कार्य हो रहे है और कई ग्राम पंचायत ऐसे भी है जहां लाख रूपये का भी काम नही हुआ है। ऐसा इसलिये ह,ै क्योंकि सरपंचों से कार्य स्वीकृत कराने के नाम पर सत्ता के दलाल मोटी कमिषन लेते है जो सरपंच आर्थिक रूप से सम्पन्न है वे पहले कमिषन देते है और काम लेते है इसमे गरीब तबके का सरपंच पिछे रह जाता है जिस कारण ग्राम पंचायत में विकास कार्य नही आ पाता।
एक सरपंच ने नाम नही छापने के षर्त पर बताया कि कार्य प्रारंभ कराने के नाम पर मिलने वाली प्रथम किस्त में ही कमिषन देना पड़ता है। जिससे कार्य प्रारंभ कराने में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि इस मद का राशि उस मद में और उस मद का राशि इस मद में खर्च करना पड़ता है। और ऐसे में किसी ने षिकायत कर दिया तो कर्ज लेने की नौबत हमारे सामने होती है। एक महिला सरपंच ने बताया कि काम पुरा होने से पहले ही कार्य पूर्णता के कागज में दस्तखत कराने का दबाव बनाया जाता है, इसके बाद जब पैसा निकालने के लिये जाते है तो उधारी वाले बैंक के पास से ही पिछे पड़ जाते है। गाव के मजदूरों का पैसा कहीं और चला जाता है हम अकारण बदनाम होते है। असली भ्रश्टाचार करने वाले तो सत्ता की आड़ में बच जाते है और बिना गलती के ही हमें गांव में विरोध सहना पड़ता है।
सवाल शुरू होता है खुद से ‘क्या हमने कोई काम ले-दे कर करवाया है ?’ बस, देश में रिश्वत के स्तर और समाज में उसकी मान्यता का अंदाजा यहीं से लग जाएगा। चाय पानी, सुविधा शुल्क, कमिषन, घूस और न जाने कितने नामों से प्रचलित रिश्वत हमारी प्रणाली में घुन्न की तरह लगी और बढती चली जा रही है। न तो रिश्वत नयी बात है और न ही हमारे देष में इसका होना कोई अजूबा। बीते वर्षों में यहां इसका प्रचलन जिस तरह से बढा है और यह धारणा बनी है कि कोई काम बिना लिए - दिए नहीं होगा, वह चिंताजनक है। भ्रष्टाचार करने वाले हजार के नोटों की तरह बढ़ रहे हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले चार आने आठ आने की तरह गायब हो रहे हैं। रही सही कसर उचित समुचित कानूनों के अभाव ने पूरी कर दी है। इन बिगड़े हालात का कोई समाधान नजर नहीं आता। ‘रिश्वत लेते पकड़े जाने वाले, रिश्वत देकर छूट जाते हैं’- यह एक कड़वा सत्य है।



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